बॉलीवुड का सबसे विख्यात और 'कुख्यात' म्यूजिक मैन, जिसे मार डाला गया

हिंदी सिनेमा और उसके संगीत के बारे में तमाम बातें होती हैं. मसलन, 70’s के बाद के गानों में वो बात नहीं रही. ब्लैक एंड वाइट टाइम में सब सहगल की तरह क्यों गाते थे. आखिर रहमान के संगीत में ऐसा क्या है! इंडी-पॉप के सितारों के ऐल्बम अब क्यों नहीं आते. ऐसे तमाम सवालों से भरी फिल्म संगीत की LP रिकॉर्ड से हेडफोन तक की, वाया डेक मशीन हुई यात्रा के किस्सों पर हम बात करेंगे. पेश है दूसरी किस्त. 1978 में आई डॉन फिल्म ने हिंदुस्तान को इस डायलॉग और खई के पान बनारस वाला जैसे गानों के अलावा एक और ज़रूरी चीज़ हिंदी सिनेमा को दी. डॉन हिंदी सिनेमा की ऐसी शुरुआती फिल्मों में थी जिसके ऑडियो कैसेट बड़ी संख्या में बिके. इससे पहले गोल चक्के वाले रिकॉर्ड का ज़माना था. इस बदलाव ने कई स्तरों पर हिंदी सिनेमा और उसके संगीत को बदल दिया. म्यूज़िक इंडस्ट्री का रिकॉर्ड से कैसेट पर शिफ्ट होना सिर्फ टेक्नॉल्जी के स्तर पर बदलाव नहीं था. कैसेट में घर में ही गाने रिकॉर्ड करने, उन्हें इरेज कर के फिर से गाने भरने की सुविधा थी. कैसेट की इस खासियत को दिल्ली के दरियागंज के एक पंजाबी लड़के गुलशन कुमार दुआ ने सही समय पर पहचान लिया. गुलशन कुमार का नाम बाद में हिंदुस्तान की म्यूजिक इंडस्ट्री का सबसे बड़ा नाम बना. कैसेट किंग कहे जाने लगे गुलशन कुमार. पर इनके तरीके बहुत अलग थे. इस दौर में टी सिरीज़ ने खूब पैसा कमाया. ग्राहक और दुकानदार जहां बहुत खुश थे. HMV जैसी कंपनियों के मालिक कॉपीराइट कानून की खामियों के चलते कुछ नहीं कर पा रहे थे. दरअसल उस समय के कानून के मुताबिक किसी को कॉपीराइट उल्लंघन के चलते गिरफ्तार करने के लिए उसे ऑन द स्पॉट पकड़ना ज़रूरी था. मतलब टी-सिरीज़ के मालिक को तभी गिरफ्तार किया जा सकता था जब वो खुद कैसेट कॉपी करते पकड़े जाते.80 आते आते राजेश खन्ना का दौर गुज़र चुका था. इसके साथ ही शास्त्रीय और लोक धुनों को मेलोडी में पिरोकर बनने वाले गाने भी अतीत का हिस्सा बन गए थे. पुराने संगीतकारों को कहा जा रहा था कि या तो एक खास तरह के संगीत की नकल करके इस्तेमाल करें नहीं तो काम करना छोड़ दें. किशोर कुमार अमिताभ बच्चन के साथ काम करने से मना कर चुके थे और इसके साथ ही ऐंग्री यंग मैन का नायकत्व अब हांफ रहा था. ऐसे में मिथुन की फिल्मों ने ज़ोर पकड़ा जिनमें हीरो कभी ट्रक ड्राइवर होता, कभी मैकेनिक, कभी समाज के ऐसे ही किसी वर्ग का रिप्रज़ेंटेटिव. अगर पुलिस वाला होता तो 70’s के विजय की तरह उसके गुस्से के साथ उसूल नहीं होते. ऐसे हीरो की लोकप्रियता इसी वर्ग में बढ़ी और उसी परिपाटी के गाने भी चलने लगे. आपको आज भी ये वर्ग उसी समय के गाने सुनता मिलेगा क्योंकि इस दौर के गुज़रते गुज़रते सिनेमा का नायक वापस NRI हो गया. इस समय में गुलशन कुमार नॉएडा से बम्बई का रुख कर चुके थे.

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